कर्नाटक चुनाव का जातीय गणित, कैसे पासा पलट सकते हैं वोक्कालिगा और लिंगायत? समझें समीकरण

कर्नाटक विधानसभा के लिए 10 मई को वोट डाले जाएंगे। 13 मई को नतीजे आ जाएंगे। इसके पहले यहां की सियासत में जबरदस्त गहमा-गहमी देखने को मिल रही है। खासतौर पर दो समुदाय के वोटों को लेकर यहां के तीनों प्रमुख दलों के बीच घमासान मचा हुआ है।

हर राजनीतिक दल इन दोनों समुदाय के वोटर्स को अपनी ओर खींचना चाहता है। ये समुदाय है वोक्कालिगा और लिंगायत। ऐसे में आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर ऐसा क्या है कि सभी राजनीतिक दलों के बीच वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के वोटर्स को अपने पाले में करने के लिए रस्साकशी चल रही है? क्यों कहा जा रहा है कि ये दोनों समुदाय किसी भी राजनीतिक पार्टी का खेल पलट सकते हैं? आइए समझते हैं..

. पहले सूबे में जातिगत ताकत की बात कर लेते हैं 
कर्नाटक में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा हिन्दू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी हैं। इसके बाद मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या 79 लाख यानी 12.91 फीसदी है। राज्य में ईसाई 11 लाख यानी लगभग 1.87 फीसदी हैं और जैन आबादी 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है।

कर्नाटक का लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय है। इनकी आबादी करीब 17 फीसदी है। इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय वोक्कालिगा है, जिसकी आबादी करीब 14 फीसदी हैं। राज्य में कुरुबा जाति की आबादी आठ फीसदी, एससी 17 फीसदी, एसटी सात फीसदी हैं। लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के चलते हुआ था।

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