सत्तर बरस की मालती देवी सिर पर सामान की गठरी लादे गौरीकुंड से 16 किलोमीटर का सफर तय करके यहां हफ्ते भर में पहुंचीं लेकिन पथरीला रास्ता, लंबा सफर, खच्चरों की भीड़ और खराब मौसम भी केदारनाथ यात्रा के लिये उनका उत्साह कम नहीं कर सका। जनकपुर से आई मालती देवी अपने हमउम्र आठ लोगों के समूह में गौरीकुंड से निकली थीं। दुर्गम रास्ता, हेलीकॉप्टर टिकट के लिये लंबी कतार, ठहरने के लिये कमरे नहीं मिल पाना और खाने पीने का सामान करीब दोगुने दाम पर मिलने के बावजूद 16 किलोमीटर के रास्ते पर सिर्फ यात्रियों का हुजूम नजर आता है और मंदिर के बाहर की भीड़ उनके उत्साह और जीवट की कहानी कहती है।
आम तौर पर अक्टूबर में यहां तीर्थयात्रियों की संख्या कम हो जाती है लेकिन कोरोना महामारी के बाद इस साल रिकॉर्ड संख्या में लोग प्रतिकूल मौसम की परवाह किये बिना यहां जुटे हैं। मालती देवी ने ‘भाषा’ से कहा ,‘‘ हमें लोगों ने मना किया था कि इस उम्र में नहीं कर सकोगी और बाढ़ आ गई तो क्या करोगी। हमें भी डर लगा लेकिन फिर हिम्मत करके आ गए। यहां रुक नहीं सकेंगे क्योंकि यहां का जाड़ा बर्दाश्त नहीं होता है।’’ बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के आंकड़ों के अनुसार 2018 में 7,32,241 और 2019 में 10,00,021 श्रृद्धालुओं ने केदारनाथ यात्रा की जबकि 2020 में कोरोना काल में यह आंकड़ा 1,34,881 रहा और इस साल पिछले तमाम रिकॉर्ड तोड़ते हुए दशहरे तक यह आंकड़ा 13 लाख पार कर चुका था।
मंदिर के कपाट 27 अक्टूबर को बंद होंगे और यात्रियों की भीड़ प्रतिदिन बढती जा रही है। केदारनाथ जाने के लिये गौरीकुंड तक ही गाड़ी से आ सकते हैं जिसके बाद हेलीकॉप्टर , पैदल या खच्चर पर जाने का विकल्प है। हेलीकॉप्टर बुकिंग का आलम इस साल यह रहा कि आनलाइन आरक्षण खुलते ही सारे टिकट बिक गए। अधिकारियों के अनुसार गुप्तकाशी, फाटा और सेरसी से करीब आधा दर्जन कंपनियों की सेवायें उपलब्ध हैं लेकिन टिकटों को लेकर जबर्दस्त मारामारी है।
गोरखपुर से सपरिवार आये सत्येंद्र दुबे को तीन दिन फाटा में रूकना पड़ा और चौथे दिन ही उन्हें टिकट मिल सकी। उन्होंने बताया ,‘‘ हम रोज रात को ही लाइन में लग जाते थे क्योंकि काउंटर सुबह सात बजे खुलता है लेकिन तीन दिन हमारा नंबर नहीं आया। हम फाटा में ही रुके रहे और चौथे दिन जाकर टिकट मिला।’’ वह कहते हैं, ‘‘असुविधा तो है लेकिन क्या किया जा सकता है।’’ अधिकारियों का कहना है कि तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या और खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर सेवा बीच में स्थगित हो जाने से कतार बढ़ती जाती है और कई बार तो यात्री आपा भी खो देते हैं। पैदल यात्री गौरीकुंड से 16 किमी की चढ़ाई शुरू करते हैं।
सोनप्रयाग से पांच किमी दूर गौरीकुंड आने के लिये स्थानीय टैक्सी ही एक विकल्प है और उसमें ठसाठस सवारी भरी जाती है। एक टैक्सी चालक सोमवीर ने बताया ,‘‘ इस बार तो ऑफ सीजन में भी जबर्दस्त भीड़ है और रोज की 16-17 फेरे हो जा रहे हैं। मई-जून में तो रोज 25-30 फेरे लग जाते थे।’’ एक बार केदारनाथ पहुंचने के बाद कमरे का इंतजाम करना भी आसान नहीं है चूंकि 2013 की बाढ़ के बाद यहां बहुत सीमित विकल्प ही बचे हैं। गढ़वाल मंडल विकास निगम के कई श्रेणियों के कॉटेज या टेंट मंदिर से करीब एक किलोमीटर पर बने हैं लेकिन ऑनलाइन बुकिंग से जगह नहीं मिल पाती है।
पुणे से आये विजय पाटिल ने मंदिर परिसर के पास बने भवन में एक छोटा सा कमरा आठ हजार रूपये प्रतिदिन के दाम पर लिया जिसमें तीन पलंग के अलावा कुछ नहीं था। उन्होंने कहा, ‘‘इतनी दूर पैदल आने के बाद उसी दिन वापसी की हिम्मत नहीं बची थी और हम यहां कुछ समय बिताना चाहते थे। यही एक विकल्प बचा था तो क्या करते।’’ बीकेटीसी के प्रभारी कार्याधिकारी आर सी तिवारी ने कहा ,‘‘यह तो अत्यंत हर्ष का विषय है कि कोरोना काल के बाद इतनी बड़ी संख्या में श्रृद्धालुओं ने यहां दर्शन किये। स्थानीय लोगों की आजीविका यात्रियों से ही चलती है।’’ उन्होंने कहा,‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मास्टर प्लान पर काम पूरा होते ही व्यवस्था और बेहतर हो जायेगी। इस पर कार्य तेजी से चल रहा है।’’ केदारनाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ है।
खबरों के अनुसार इसमें शंकराचार्य की मूर्ति की स्थापना के साथ यहां सरस्वती आस्था पथ एवं घाट के इर्द-गिर्द सुरक्षा की दीवार, मंदाकिनी आस्था पथ के इर्दगिर्द सुरक्षा की दीवार, तीर्थ पुरोहित गृह और मंदाकिनी नदी पर गरुड़ चट्टी पुल शामिल है। इसके अलावा करीब 180 करोड़ रुपये की लागत से संगम घाट के पुनर्विकास, प्राथमिक चिकित्सा एवं पर्यटक सुविधा केंद्र, प्रशासनिक कार्यालय एवं अस्पताल, दो अतिथि गृह, पुलिस स्टेशन, कमांड एंड कंट्रोल सेंटर, मंदाकिनी आस्था पथ कतार प्रबंधन और रेनशेल्टर एवं सरस्वती नागरिक सुविधा भवन भी केदारनाथ धाम परियोजना का हिस्सा है।