गडकरी का डिमोशन और फडणवीस का प्रमोशन, RSS में बदले समीकरण से कटा पत्ता

ये वाजपेयी और आडवाणी के दौर की बात है। तब चाणक्य की भूमिका में प्रमोद महाजन हुआ करते थे। एक बार प्रमोद महाजन से वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने पूछा था कि आप वाजपेयी और आडवाणी में से बड़ा नेता किसे मानते हैं। प्रमोद महाजन ने जवाब दिया था कि बड़ा नेता वो जिसे संघ बड़ा नेता माने। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ये वो हीरे हैं जो संघ की खुदाई से निकले हैं। लेकिन क्या हुआ ऐसा कि कभी मोहन भागवत के संघ संरचालक बनने के बाद बीजेपी की कमान शाखा में अपना बचपन बीताने वाले नेता को सौंपे जाने के 13 बरस के भीतर ही उसी संघ की हरी झंडी के बाद नागपुर से बीजेपी सांसद गडकरी को पार्टी संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया। इसके अलावा केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) से भी हटा दिया गया। भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारी और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पार्टी के संसदीय बोर्ड से हटाने का आश्चर्यजनक निर्णय आरएसएस नेतृत्व की सहमति से लिया गया था। वरिष्ठ मंत्री के “आउट ऑफ टर्न” और कुछ  टिप्पणी करने की प्रवृत्ति से संघ नाराज चल रहा था। गडकरी की टिप्पणियों का इस्तेमाल विरोधियों और अन्य लोगों द्वारा केंद्र में पार्टी और सरकार के खिलाफ किया गया। भाजपा के कई वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार संघ नेतृत्व ने भाजपा के पूर्व प्रमुख गडकरी को उनकी टिप्पणी करने की प्रवृत्ति के प्रति आगाह किया था। गौरतलब है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता गडकरी ने पार्टी में रहते हुए कभी कांग्रेस की मज़बूती की कामना की तो कभी ये कह दिया कि बीजेपी केवल मोदी-शाह की पार्टी नहीं है।

कांग्रेस की मजबूती की कामना, इंदिरा की तारीफ

पिछले महीने नागपुर में आयोजित एक समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि कभी-कभी वह सोचते हैं कि राजनीति छोड़ दें क्योंकि जीवन में कई और चीज करने के लिए पड़े हैं। एक अन्य समारोह में गडकरी ने कहा था कि दानदाता राजनीतिक दलों के पीछे पड़े रहते हैं और उनकी मांग को पूरा करना पड़ता है। चूंकि मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं हूं तो मुझे इस तरह की चीजों से वास्ता नहीं पड़ता है। पुणे में आयोजित एक जर्नलिज़्म अवॉर्ड शो में नितिन गडकरी ने कहा, ”एक लोकतंत्र में विपक्षी पार्टी की भूमिका बेहद अहम है. मैं दिल से कामना करता हूं कि कांग्रेस मज़बूत बनी रहे। मुबंई में एक कार्यक्रम के दौरान नितिन गडकरी ने कहा था, ”सपने दिखने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। इसलिए सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकें। बीजेपी जहां देश में आपातकाल लगाने के लिए इंदिरा गांधी की जमकर आलोचना करती रही है, वहीं नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान नितिन गडकरी ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा की थी। महाराष्ट्र में जब मराठा आरक्षण का मुद्दा ज़ोरों पर था तब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ये कहकर मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी थीं कि आरक्षण देने का क्या फ़ायदा जब देश में नौकरियां ही नहीं हैं।

जो उपयोगी है वो उसका है और जो अनुपयोगी है वो उसका होकर भी नहीं 

गडकरी ने कई बार पार्टी लाइन से ऊपर उठकर बयान दिए जिसे पार्टी के नज़रिये से देखने पर सही नहीं लगेगा। गडकरी को हटाने का फैसला आरएसएस की सहमति से ही लिया गया है। नेताओं का कहना है कि गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटाने के फैसले से कुछ सप्ताह पहले ही अवगत करा दिया गया था। 2014 के बाद बीजेपी में काफी बदलाव आए हैं और इस बात से कोई इनकार भी नहीं कर सकता। उसमें हारी हुई बाजी को जीत में बदलने का हुनर आ गया है। पार्टी को अब हार शब्द इतना नागवार गुजरने लगा है कि पार्टी टाइम पॉलिटिक्स को उसने फुल टाइम जॉब बना दिया है। बात चाहे चुनावी रैलियों के माध्यम से मैदान में उतरना हो या वर्क फ्रॉम होम वाले टाइम में आभाषी मंच का सहारा लेना पार्टी की बस एक ही नीति है द शो मस्ट गो ऑन। वो जोखिम लेने से नहीं डरती उसका सीधा सा फॉर्मूला है जो उपयोगी है वो उसका है और जो अनुपयोगी है वो उसका होकर भी नहीं है।

गडकरी के जरिये संघ ने ली थी बीजेपी की कमान

2009 में जब मोहन भागवत ने सरसंघचालक का पद संभाला तो आम चुनाव में महज दो महीने बाकी थे। इस चुनाव में बीजेपी की हार हुई और आडवाणी पीएम इन वेटिंग बने रह गए। इसके बाद संघ ने पार्टी पर अपनी पकड़ फिर से मजबूत करनी शुरू की। चुनाव में हार के बाद अगस्त में बीजेपी के नए अध्यक्ष का ऐलान हुआ। अध्यक्ष ऐसे आदमी को बनाया गया जो राष्ट्रीय राजनीति में उस समय तक बहुत प्रासंगिकता नहीं रखता था। नितिन गडकरी नागपुर के रहने वाले थे। ब्राह्मण परिवार से आने वाले गडकरी का बचपन भी संघ की शाखा में बीता था। इससे पहले वो महाराष्ट्र में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे थे और उनके नेतृत्व में ही महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को हार मिली थी। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति से केंद्र की राजनीति में नितिन गडकरी को लाकर संघ ने एक फिर से बीजेपी की कमान अपने हाथ में ले ली है।

मोदी से रिश्ते

साल 2009 में जब नितिन गडकरी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो नरेंद्र मोदी बीजेपी के इकलौते मुख्यमंत्री थे जो उन्हें शुभकामना देने दिल्ली नहीं आए थे। वहीं 2009 से 2013 के बीच गडकरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहे। इस दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम रहे। नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी माने जाने वाले संजय जोशी को पार्टी में सक्रिय करने में भी नितिन गडकरी की अहम भूमिका रही थी। नितिन गडकरी ने संजय जोशी को 2012 में जब यूपी का चुनाव संयोजक बनाया तो मोदी को ये पसंद नहीं आया था और वो उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने नहीं गए। बाद में साल 2012 में पार्टी के मुंबई अधिवेशन में मोदी ने संजय जोशी के इस्तीफ़े की मांग रख दी। हालांकि कई राजनीतिक जानकार इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में बदले समीकरण की वजह भी मान करहे हैं। गडकरी के आरएसएस के साथ नजदीकी तो जगजाहिर है। लेकिन दत्तात्रेय होसबोले के सरकार्यवाह बनने के बाद चीजें बदलने लगी थीं। संघ प्रमुख के बाद सरकार्यवाह दूसरे नंबर पर होते हैं और वे अहम फैसले भी लेते हैं। गडकरी के लिए होसबोले की जगह भैयाजी जोशी ज्यादा मुफीद थे।

‘अगर गडकरी भगवा मूड नहीं पढ़ पाए तो आगे और कार्रवाई होगी’

संघ के सख्त रुख ने भाजपा नेतृत्व की मदद की जो पहले से ही गडकरी के बयानों से नाराज चल रहा है। इसके बाद उन्हें पार्टी के शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय से हटाने का मन बना लिया। सूत्रों ने कहा कि भाजपा और संघ नेतृत्व दोनों इस बात से सहमत है कि व्यक्ति चाहे किसी भी कद का क्यों ना हो उसे संगठनात्मक आचरण के नियमों के विरुद्ध जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

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