गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए सभी दलों के अधिकतर उम्मीदवारों की सूची सामने आ चुकी है जिसके बाद चुनाव प्रचार और तेज हो गया है। भाजपा जहां अपनी जीत के प्रति आशान्वित है वहीं विपक्ष को लग रहा है कि जनता इस बार भाजपा से छुटकारा पा लेगी। लेकिन विपक्ष जिस तरह बिखरा हुआ नजर आ रहा है उसका सीधा फायदा भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है। पहले यहां चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच हुआ करता था लेकिन इस बार मुकाबले में आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम और कुछ अन्य दलों के भी होने से भाजपा विरोधी मतों का बिखराव होगा जोकि सत्तारुढ़ पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास
इस बीच, गुजरात में मुस्लिमों और पाटीदारों को पटाने के लिए सभी दलों ने प्रयास तेज कर दिये हैं। गुजरात में आगामी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट हासिल करने की होड़ तेज होती दिख रही है क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय के पास भाजपा शासित राज्य में वोट देने के लिए अब कई ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ दलों का विकल्प मौजूद है। पहले के चुनावों में कांग्रेस को गुजरात में मुस्लिम वोटों के लिए इकलौता प्रमुख दावेदार माना जाता था लेकिन इस बार मुख्य विपक्षी दल अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए छोटे-छोटे दलों के कड़े मुकाबले का सामना कर रहा है। कांग्रेस के सामने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कुछ अन्य दलों की चुनौती है।
मुस्लिम जनप्रतिनिधियों की वर्तमान स्थिति
हम आपको बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में केवल तीन मुस्लिम विधायक जीते थे और तीनों कांग्रेस के थे। हालांकि, 2012 विधानसभा चुनाव के मुकाबले यह संख्या बेहतर थी जब महज दो मुस्लिम विधायक जीते थे। देखा जाये तो गुजरात की कुल 6.5 करोड़ की आबादी में मुस्लिमों की संख्या तकरीबन 11 प्रतिशत है और करीब 25 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी खासी तादाद है। वैसे यह भी एक तथ्य है कि दो दशकों से अधिक समय से गुजरात में राज कर रही भाजपा को मुस्लिम मतदाताओं की पसंद नहीं माना जाता है। भाजपा आमतौर पर किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं देती है।