केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को शुक्रवार को बताया कि चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे का सर्वथा पारदर्शी जरिया है तथा इसके माध्यम से काला धन या बिना हिसाब का धन प्राप्त करना असंभव है। चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयास के तहत राजनीतिक दलों को दी जाने वाली नकद राशि के विकल्प के तौर पर बॉण्ड की शुरुआत की गयी है। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ के समक्ष दलील दी, ‘‘चंदा पाने का यह तरीका बहुत ही पारदर्शी है।हम चरण-दर-चरण इसकी व्याख्या करेंगे। अब काला धन या बेहिसाब धन प्राप्त करने असंभव है।’’ देश की शीर्ष अदालत ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। एडीआर की ओर से पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने गत पांच अप्रैल को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण के समक्ष इस मामले को रखा था और कहा था कि यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है तथा इस पर तत्काल सुनवाई होनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी, हालांकि यह मामला किसी अदालत के समक्ष नहीं आया। भूषण ने गत चार अक्टूबर को न्यायालय से आग्रह किया था कि इस मामले पर तत्काल सुनवाई की जाए और केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि मामले के लंबित रहने के दौरान चुनावी बॉण्ड की बिक्री न की जाए।याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मुद्दा वृहद पीठ को सौंपा जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वह छह दिसंबर को इस पर गौर करेगा कि चुनावी बॉण्ड के जरिये राजनीतिक दलों को चंदा मिलने के प्रावधान वाले कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए वृहद पीठ को भेजा जाए या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह महत्वपूर्ण मामला है, जिसकी विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। इसके साथ ही इसने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से इस मामले में सहयोग मांगा।