मध्य प्रदेश का उज्जैन शहर अपनी आध्यात्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित हरसिद्धि माता का मंदिर अपनी आस्था, इतिहास और भक्ति के रूप में विख्यात है। हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार 51 शक्तिपीठ हैं। जहां-जहां माता सती के अंग, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। देवी पुराणों में 51 शक्तिपीठों का उल्लेख है, इनमें से 3 शक्तिपीठ मध्य प्रदेश में हैं। उज्जैन की हरसिद्धि शक्तिपीठ इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है। हरसिद्धि देवी के मंदिर की विशेषता है कि इसमें देवी का कोई विग्रह नहीं है, सिर्फ कोहनी है, जिसे हरसिद्धि देवी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में माता हरसिद्धि के साथ ही महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं।
हरसिद्धि माता के मंदिर की चारदीवारी में चार प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के पूर्व द्वार पर सप्तसागर तालाब है और दक्षिण-पूर्व कोने में कुछ ही दूरी पर एक बावड़ी है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरव पर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। वैसे दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है। हरसिद्धि माता का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियां एक जैसी हैं। इंदौर से 60 किलोमीटर दूर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहां का महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग) तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय और पौराणिक महत्व के स्थल हैं।
धार्मिक मान्यताएं
शास्त्रों के अनुसार माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। लेकिन, राजा दक्ष अपनी बेटी के विवाह से नाखुश थे और अपने अहंकार में भगवान शिव का अपमान करते रहते थे। एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवी-देवता को आमंत्रित किया। लेकिन, भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब माता सती को ये बात पता चली, तो वे अपने पति शिव जी का अपमान नहीं सह पाईं।
शिव पुराण अनुसार मान्यता है कि सती बिन बुलाए अपने पिता के घर गई थीं। वहां राजा दक्ष द्वारा अपने पति शिव का अपमान सहन न कर पाने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया था। भगवान शंकर यह शोक सह नहीं पाए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया, जिससे चारों ओर प्रलय मच गया। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया। तब विष्णु ने सती के अंगों को अपने चक्र से 51 भागों में विभक्त कर दिया। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ था। यहां माता की कोहनी की पूजा होती है। यहां की शक्ति ‘मंगल चण्डिका’ तथा भैरव ‘मांगल्य कपिलांबर’ हैं।
मान्यता के अनुसार प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर में हमेशा कमल पुष्प खिले रहते थे। इसके पश्चिमी तट पर ‘देवी हरसिद्धि’ का तथा पूर्वी तट पर ‘महाकालेश्वर’ का मंदिर है। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर ‘श्रीयंत्र’ है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं। उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है। तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं।
श्रीयंत्र की पूजा
शिवपुराण के अनुसार यहां श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदि शक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहां सदैव ज्योति प्रज्वलित होती रहती है। दोनों नवरात्रि में यहां महापूजा होती है।
1001 दीप मालाओं का महत्व
मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते ही माता के वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः और सायंकाल की आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। जो 2000 साल पुराने बताये जाते हैं। हरसिद्धि माता मंदिर के बाहर 1001 दीप माला है, जो 51 फीट ऊंची है। इनमें से एक ‘शिव’ है, जिसमें 501 दीपमालाएं हैं, दूसरा ‘पार्वती’ है, जिसमें 500 दीपमालाएं हैं। दोनों दीप स्तंभों पर दीपक जलाए जाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है और मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालु ये दीप प्रज्वलित कराते हैं। इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में 45 लीटर तेल लगता है।