शूटरों को पकड़ने में सीबीआई-पुलिस नाकाम

राजूपाल हत्याकांड में सीबीआई के वांछित शूटर अब्दुल कवि के बुधवार को लखनऊ की सीबीआई की विशेष अदालत में आत्मसमर्पण से एक बार फिर साबित हो गया कि जांच एजेंसियां अतीक अहमद के परिवार और उसके गैंग के सदस्यों को गिरफ्तार करने में लगातार नाकाम साबित हो रही हैं। राजूपाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के मामले में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं। उमेश पाल और दो सरकारी गनर की हत्या करने वाले शूटरों की तलाश में प्रदेश पुलिस अपना सबसे महंगा ऑपरेशन चला रही है लेकिन अभी तक किसी भी शूटर के बारे में पुख्ता सुराग हाथ नहीं लगा है।

दरअसल, उमेश पाल हत्याकांड की जांच कर रहे प्रयागराज पुलिस कमिश्नरेट और इसमें सहयोग कर रही एसटीएफ के अधिकारी बीते डेढ़ माह से शूटरों की तलाश में कई राज्यों की खाक छान रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, एसटीएफ मुख्यालय के अलावा मेरठ, प्रयागराज, आगरा, नोएडा, कानपुर, वाराणसी के 80 फीसद कर्मी इस ऑपरेशन को अंजाम दे रहे हैं। साथ ही प्रयागराज कमिश्नरेट के सैंकड़ों पुलिसकर्मियों को भी शूटरों की तलाश में लगाया गया है। इससे ये ऑपरेशन प्रदेश पुलिस के इतिहास का सबसे महंगा साबित हो रहा है। इस ऑपरेशन के लिए डीजीपी मुख्यालय, एसटीएफ और प्रयागराज कमिश्नरेट के सीक्रेट सर्विस फंड का पूरा इस्तेमाल किया जा चुका है।

पुलिस के साथ सीबीआई भी नाकाम
अतीक के करीबी परिजनों और शूटरों की तलाश में पुलिस के साथ सीबीआई भी नाकाम साबित हुई है। इससे पहले राजूपाल हत्याकांड में अशरफ ने बड़ी आसानी से प्रयागराज पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। देवरिया जेल कांड में सीबीआई के वांछित अतीक के बेटे उमर ने भी इसी तरह लखनऊ की सीबीआई कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसकी भनक सीबीअाई अथवा यूपी पुलिस की इंटेलिजेंस को भी नहीं लगी थी। अतीक के दूसरे बेटे अली का बीते वर्ष जुलाई माह में प्रयागराज की अदालत में आत्मसमर्पण पुलिस के लिए गहरा झटका साबित हुआ था। रंगदारी के मामले में वांछित 50 हजार के इनामी अली ने वकील के भेष में अदालत आकर आत्मसमर्पण कर दिया था। इसी तरह हालिया बरेली जेल कांड में भी अतीक के भाई अशरफ के गुर्गे लल्ला गद्दी को पुलिस तलाशती रह गई और उसने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया।

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