‘सबका साथ, सबका विकास’ का दर्शन गांधीवादी विचार से प्रेरित: उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार का ‘सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास और सबका प्रयास’ का दर्शन एक गांधीवादी विचार है, जो ‘हर तरह की राजनीति’ से परे है। उपराष्ट्रपति ने समाज के एक वर्ग के बीच इस धारणा को बहुत ‘खतरनाक रुझान’ के रूप में वर्णित किया, जिसके तहत लोग मानते हैं कि केवल वही दर्शन सही है, जिसमें वे विश्वास करते हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि गांधी जी सबकी बात को सुनते थे। वह यहां ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना के 90 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि कानून के समक्ष सभी समान हैं और यह मायने नहीं रखता कि उनका इतिहास क्या है या वे कितने ताकतवर हैं। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति देश के कानून से बंधा है। धनखड़ ने कहा कि गांधी के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 महामारी के दौरान दो साल तक 90 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दिया गया, जो किसी देश की कल्पना से परे की बात है। धनखड़ ने कहा कि करोड़ों देशवासियों को कोरोना वायरस टीका की दो खुराक लगने से ‘महात्मा की आत्मा संतुष्ट हुई होगी’। उन्होंने कहा कि गांधीवादी दर्शन के अनुरूप 18 करोड़ परिवारों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया, ताकि वे खाना पकाने के लिए परंपरागत ईंधन के इस्तेमाल से मुक्ति पा सकें। उपराष्ट्रपति ने कहा कि पहले जो लोग बैंक में प्रवेश करने से डरते थे, उन्हें उनके दरवाजे पर पहुंचकर बैंकिंग प्रणाली में शामिल किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि गांधीवादी आदर्श संविधान के मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक सिद्धांतों में व्याप्त हैं।उपराष्ट्रपति के मुताबिक बापू की शिक्षाएं मानवता के लिए सदैव प्रासंगिक रहेंगी। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से मानवता को बहुत लाभ होगा। आज दुनिया में गरीबी, जलवायु परिवर्तन और युद्ध समेत कई तरह की समस्याएं हैं, लेकिन गांधी जी के विचार इन सबका समाधान उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने गांधीजी के स्वराज का जिक्र करते हुए कहा कि इसका अर्थ पंक्ति में मौजूद अंतिम व्यक्ति का उत्थान है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार की खाद्य सुरक्षा, टीकाकरण, सार्वभौमिक बैंकिंग की सभी योजनाएं गांधीवादी भावना के अनुरूप हैं। उपराष्ट्रपति ने डॉ. बी आर आंबेडकर को भी श्रद्धांजलि दी और संविधान सभा में उनके आखिरी भाषण का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है, ‘‘राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं चल सकता, जब तक कि इसके आधार के रूप में सामाजिक लोकतंत्र न मौजूद हो।

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