‘BJP नैरेटिव गढ़ती है, उसका फायदा लेती है’, नए संसद भवन विवाद पर जानिए विश्लेषकों की राय

खबरों के खिलाड़ी’ के नए अंक के साथ एक बार फिर हम आपके सामने प्रस्तुत हैं। इस साप्ताहिक शो में हम हफ्ते की बड़ी खबरों का विश्लेषण करते हैं। इस चुनावी चर्चा को अमर उजाला के यूट्यूब चैनल पर लाइव देखा जा सकता है। शनिवार रात नौ बजे और रविवार सुबह नौ बजे भी इसे देखा जा सकता है। इस वक्त देश में नए संसद भवन के उद्घाटन की खूब चर्चा है। 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होना है। दूसरी ओर केंद्र में भाजपा सरकार के कार्यकाल के नौ साल पूरे हो चुके हैं। भाजपा जहां इस मौके पर अपनी उपलब्धियां गिना रही है, वहीं विपक्ष सरकार की खामियां गिना रहा है। इस बार की चर्चा इन्हीं मुद्दों पर फोकस रही। इस बार की चर्चा में बतौर विश्लेषक हमारे साथ अदिति अनंतनारायण, कात्यायनी चतुर्वेदी, सुमित अवस्थी, जयशंकर गुप्ता, प्रेम कुमार, हर्षवर्धन त्रिपाठी, विनोद अग्निहोत्री मौजूद रहे। पढ़िए चर्चा के कुछ अंश…

. सुमित अवस्थी
नए संसद भवन के उद्घाटन में सेंगोल की काफी चर्चा है लेकिन अचानक से इसे मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है। राजदंड को राजशाही का प्रतीक माना जाता है लेकिन जब देश में सामान्य परिवार से आने वाले नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति हैं, ये इस बात का सबूत है कि देश में लोकशाही है तो फिर राजदंड जैसे प्रतीक की क्या जरूरत है?

विपक्ष ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का एलान किया है लेकिन क्या ये विरोध का सही तरीका है? क्या विपक्ष अलग तरीकों से विरोध नहीं कर सकता था? ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा, सेंगोल के सहारे तमिलनाडु को साधना चाहती है क्योंकि सेंगोल का ताल्लुक तमिलनाडु से ही है। नए संसद भवन की क्षमता ज्यादा है।

डीलिमिटेशन के बाद जब नए संसदीय क्षेत्र बनेंगे तो ज्यादा सांसद चुनकर संसद पहुंचेंगे तो देश को नए संसद की जरूरत होगी। पहले के प्रधानमंत्री भी संसद बना सकते थे और वहां अपने नाम की पट्टी लगा सकते थे लेकिन वह मौका चूक गए तो अब विरोध क्यों हो रहा है।

अदिति अनंतनारायण
जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सेंगोल के बारे में बताया तब ही पहली बार मुझे सेंगोल के बारे में पता चला। इतने सालों से इसकी बात क्यों नहीं हुई? लेकिन इस पर हो रही राजनीति भी गलत है। अरविंद केजरीवाल, आदिवासी राष्ट्रपति के अपमान का आरोप लगा रहे हैं लेकिन जब संसद के संयुक्त अधिवेशन को राष्ट्रपति ने संबोधित किया था तो जिन विपक्षी नेताओं ने उस संबोधन का बहिष्कार किया था, उनमें अरविंद केजरीवाल भी शामिल थे। विपक्ष ने बहिष्कार करके गलती कर दी है और इससे हमेशा विपक्ष को ही नुकसान होता है। आज के समय में हर चीज वोटों के लिए की जाती है। आज का युवा वर्ग देख रहा है कि एडविन लुटियंस ने संसद भवन बनाया था और अब वो देख रहे हैं कि भारत का अपना संसद भवन बन रहा है। भाजपा अगर इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर दिखा रही है तो इसका असर युवा  वर्ग और मतदाताओं पर पड़ेगा। भाजपा नैरेटिव गढ़ती है और उसमें उसे फायदा भी होता है।

कात्यायनी चतुर्वेदी
पंडित नेहरू को जब सेंगोल मिला तो उन्होंने इतने सालों तक इसे निजी संपत्ति के तौर पर छिपाकर रखा। कांग्रेसियों को लगता था कि सबकुछ उनकी बपौती था और उन्हें इसी बात की झुंझलाहट है। उनके हाथ से चीजें निकल रही हैं। नए संसद भवन पर जो पीएम मोदी के नाम की पट्टी लग रही है, उससे कांग्रेस को परेशानी है। सत्ता हस्तांतरण पर राजदंड सौंपने की हमारी पुरातन संस्कृति है, उसे लोकशाही के नाम पर छोड़ा नहीं जा सकता! नेहरू समझ ही नहीं पाए कि इस राजदंड का क्या करना है। वॉर मेमोरियल बनाकर शहीदों को सम्मान देने का काम पीएम मोदी ने किया लेकिन क्या कभी कांग्रेस का कोई व्यक्ति वार मेमेरियल गया या सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने गया! कांग्रेस सिर्फ नफरत फैलाती है।जयशंकर गुप्त
नए संसद भवन के उद्घाटन से कांग्रेस को इस बात की तकलीफ है कि उस पर राष्ट्रपति का नाम नहीं है। देश की राष्ट्रपति आदिवासी महिला हैं और उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया गया है। कांग्रेस पर भी आरोप लग रहे हैं। बता दें कि संसद भवन में लाइब्रेरी बिल्डिंग की नींव राजीव गांधी ने रखी थी और उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति ने किया था। भाजपा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री को यह घोषित कर देना चाहिए कि कांग्रेस ने जो कुकर्म किए वहीं हम करेंगे!जब संसद के पूरे सत्र का बहिष्कार किया जाता था तो उस वक्त उसे लोकतांत्रिक अधिकार बताया जाता था। अब जब विपक्ष नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहा है तो इसे राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है है। सावरकर के जन्मदिवस के दिन नए संसद भवन का उद्घाटन करके भी तो राजनीति की जा रही है। क्या राजनीति करने का अधिकार सिर्फ भाजपा को ही है? राष्ट्रपति दलित और आदिवासी हैं और आदिवासी युवा इस बात को देख रहा है। संसद की सर्वोच्च सत्ता राष्ट्रपति में  निहित होती है और उन्हें ही कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है। जिस हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की जा रही है, उसमें दलितों और आदिवासियों की जगह कहां हैं?

हर्षवर्धन त्रिपाठी
कुछ समय पहले तक किसी को सेंगोल के बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन क्यों नहीं थी? प्रयागराज के म्यूजियम में सेंगोल को ‘गोल्डन वॉकिंग स्टिक गिफ्टेड टु नेहरू’ लिखकर म्यूजियम में रखा गया था और यह नेहरू की निजी चीजों में रखा हुआ था। कहा गया कि कांग्रेस ने स्वराज भवन, आनंद भवन दान कर दिया लेकिन इन भवनों का संचालन जवाहर लाल नेहरू ट्रस्ट करती है और इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। पीएम मोदी ने नेहरू और इंदिरा गांधी की तरह खुद को भारत रत्न तो नहीं दिया। पीएम मोदी के नाम पर बना स्टेडियम सरकारी संपत्ति से नहीं बना है। गवर्नर और राष्ट्रपति एक कस्टोडियन पद हैं लेकिन प्रधानमंत्री जनता का पद है। यह देश जनादेश से चलता है, जो जनादेश से चुना जाता है वही लोकतंत्र के मूल में है। अगर पीएम मोदी संसद का उद्घाटन कर रहे हैं तो इसमें क्या गलत है?

प्रेम कुमार
संसद भवन का उद्घाटन ऐसा है जैसे एक तरह से गृह प्रवेश हो रहा है और उसमें गृह स्वामी को ही नहीं बुलाया गया है। प्रोटोकॉल के मुताबिक अगर राष्ट्रपति मौजूद होतीं तो प्रधानमंत्री उद्घाटन नहीं कर सकते थे। इस देश की विपक्षी पार्टियां मानती हैं कि कार्यक्रम में राष्ट्रपति की मौजूदगी प्राथमिकता होनी चाहिए थी, जिसे नकारा गया। ऐसे मौके पर राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति को ना बुलाकर पीएम को क्या मिलेगा? उनकी मौजूदगी सुनिश्चित होनी चाहिए। रही बात सेंगोल के जरिए दक्षिण की राजनीति साधने की तो पंडित नेहरू को यह राजदंड मिला था तो हो सकता है कि उस समय भी नेहरू के मन में उत्तर और दक्षिण को जोड़ने की भावना रही हो। आज सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक की क्या जरूरत है? भाजपा ने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सेंगोल को मुद्दा बनाया है लेकिन जैसे सावरकर को माफीवीर कहा जाता है, वैसे ही पीएम मोदी उद्घाटन वीर कहे जाएंगे। वह एक उद्घाटन नहीं छोड़ते। संसद भवन की नई इमारत का उद्घाटन करके भी वह खुद को अमर करना चाहते हैं।विनोद अग्निहोत्री 
विपक्षी पार्टियों की नाराजगी ऐसी ही है जैसे अगर घर के मालिक को नहीं बुलाया गया है तो फूफा जी नाराज हो गए हैं। ऐतिहासिक मौका है और इस मौके पर कोई विवाद ना हो, यह जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार को शिलापट्ट ऐसा बनाना जाना चाहिए था जिसमें ऐसा लिखा जाता कि पीएम मोदी के कार्यकाल में इस संसद भवन परिसर का उद्घाटन हुआ और उस पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का नाम भी होना चाहिए था। इससे सरकार की भी तारीफ होती। विपक्ष को विरोध करना ही था तो उद्घाटन समारोह में विरोधी पार्टियों को अपने प्रतिनिधियों को भेजना चाहिए था। खासकर दलित और आदिवासी समुदाय के लोगों को, जिससे विरोध प्रभावी भी होता लेकिन राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया जाना गलत है। सरकार ने कांग्रेस को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया है।बीजेपी का मतलब पीएम मोदी और पीएम मोदी का कोई भी कदम बिना किसी राजनीतिक संदर्भ के नहीं होता। जब शिलान्यास हुआ था तो दक्षिण भारत के पंडित बुलाए गए क्या उत्तर भारत में पंडित नहीं थे। तब कर्नाटक के चुनाव नहीं हुए थे। काशी में तमिल संगम का कार्यक्रम और उद्घाटन कार्यक्रम में भी तमिल के पंडित आ रहे हैं तो भाजपा यकीनन तमिल की राजनीति को साधने की कोशिश कर रही है। भारतीय संस्कृति के तो कई प्रतीक हैं। राजा को मुकुट पहनाने की परंपरा भी है तो क्या पीएम मोदी को अब मुकुट भी पहनाया जाएगा? राजदंड तो राजतंत्र की परिकल्पना है लोकतंत्र में तो लोकदंड लाया जाना चाहिए।

 

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