राजनीति (DID News): केरल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (केयूएचएस) के मुताबिक, विद्यार्थियों के 18 साल की उम्र में पूरी आजादी की मांग करना समाज के लिए अच्छा नहीं हो सकता है। केरल हाईकोर्ट में छात्राओं की याचिका की सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी ने यह तर्क दिया। दरअसल, कोझिकोड मेडिकल कॉलेज की छात्राओं ने रात साढ़े नौ बजे के बाद हॉस्टल से आने-जाने पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय ने यह भी तर्क दिया है कि छात्रों के लिए रातों की नींद हराम सही नहीं है।
वहीं, केरल सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि उसने छह दिसंबर को एक आदेश जारी कर छात्रावास के समय में काफी हद तक ढील दी है। सरकार ने कहा कि न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने इसे तत्काल लागू करने का निर्देश दिया था। इसके बाद अदालत ने टिप्पणी की कि नए आदेश के अनुसार, भले ही लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए छात्रावासों के गेट रात 9.30 बजे तक बंद हो जाते हैं, लेकिन कुछ शर्तों के साथ यह छात्रों को निर्धारित समय के बाद भी प्रवेश करने के लिए पर्याप्त छूट देता है, सिर्फ प्रथम वर्ष के छात्रों को छोड़कर।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया सरकारी आदेश स्वागत योग्य कदम है। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने मेडिकल कॉलेजों से संबंधित सभी प्रधानाचार्यों और अन्य अधिकारियों को सरकारी आदेश के अनुसार तत्काल प्रभाव से कार्य करने का निर्देश दिया।
इधर, विश्वविद्यालय ने अपने हलफनामे में दावा किया कि परिपक्वता की उम्र बच्चों को मानसिक तौर पर परिपक्व नहीं बनाती है। इस परिकल्पना का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि किशोरों के मस्तिष्क तनाव, जोखिम भरे व्यवहार, नशीली दवाओं की लत, गलत ड्राइविंग और असुरक्षित यौन संबंध के लिए संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से कमजोर हैं।