अखंड सौभाग्य के लिए स्त्रियां करती हैं हरितालिका तीज व्रत

हरितालिका तीज व्रत अखंड सुहाग का प्रतीक होता है। इस व्रत को निर्जला रहा जाता है और व्रत के दूसरे दिन जल ग्रहण किया जाता है। व्रत के सुबह पूजा के बाद जल पीकर व्रत खोला जाता है। इस व्रत की खास बात यह है कि एक बार इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद छोड़ा नहीं जाता है।

आज हरितालिका तीज व्रत है, इस उपवास को सुहागन स्त्रियां अखंड सौभाग्य के लिए और कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर पाने की कामना से करती हैं, तो आइए हम आपको इस व्रत से जुड़ी कथा तथा पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

हरितालिका तीज व्रत के बारे में जानकारी

हरितालिका तीज व्रत अखंड सौभाग्य के लिए जाना जाता है। उत्तर भारत में महिलाएं इस व्रत के लिए बहुत उत्साहित रहती हैं। यह व्रत भादो महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी को मनाया जाता है। इस साल यह व्रत 21 अगस्त को मनाया जा रहा है। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन को महत्वपूर्ण माना जाता है। हरितालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। इस व्रत को निराहार और निर्जला किया जाता है। पंडितों का मनाना है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था।

हरितालिका व्रत नाम से जुड़ी रोचक बात 

हरितालिका व्रत कथा के नाम से सम्बन्धित कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार पार्वती जी का विवाह किसी और से हो रहा था। ऐसे में उनकी सखियों ने पार्वती मां के अपहरण की योजना बनायी। इसके बाद उन्हें लेकर वन में चली गयीं। वन में जाकर उन्होंने तपस्या प्रारम्भ कर दी और उन्हें पति के रूप में भगवान शिव मिले। इसलिए इस कथा का नाम हरितालिका व्रत कथा पड़ा। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं जब इस व्रत को पूर्ण मनोयोग से करती हैं तो उन्हें अच्छा वर मिलता है।

हरितालिका से जुड़ी पौराणिक कथा है खास 

हरितालिका तीज व्रत की कथा भी खास है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कथा माता पार्वती तथा शंकर जी से सम्बन्धित है। कथा के अनुसार पार्वती जी के पिता ने एक यज्ञ कराया लेकिन उसमें शिवजी को नहीं बुलाया इससे पार्वती जी बहुत दुखी हुईं। इस अपमान से दुखी हो कर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्‍मदाह कर लिया। लेकिन अगले जन्‍म में पार्वती राजा हिमाचल की पुत्री उमा के रूप में जन्‍मी और उन्होंने भगवान शिव को मन ही मन अपना पति मान लिया।

व्रत से जुड़े नियम हैं खास  

हरितालिका तीज व्रत अखंड सुहाग का प्रतीक होता है। इस व्रत को निर्जला रहा जाता है और व्रत के दूसरे दिन जल ग्रहण किया जाता है। व्रत के सुबह पूजा के बाद जल पीकर व्रत खोला जाता है। इस व्रत की खास बात यह है कि एक बार इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद छोड़ा नहीं जाता है। साथ ही दिन में व्रत रखकर रात में जागरण कर भजन-कीर्तन करना चाहिए।

हरितालिका तीज व्रत में ऐसे करें पूजा 

हरितालिका तीज की पूजा सुबह न कर सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में की जाती है। साथ ही शिव, पार्वती और गणेश जी की हाथों से बालू रेत और काली मिट्टी की प्रतिमा बनायी जाती है। पूजा की जगह को फूलों से सजाकर एक चौकी रखकर उस पर केले के पत्ते बिछाएं और शंकर, पार्वती तथा भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा करें। इस पूजा में पार्वती जी को सुहाग की सभी वस्तुएं अर्पित की जाती है। तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें फिर आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

हरितालिका तीज की सामग्री

हरितालिका तीज का व्रत माता पार्वती ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए किया था। इसीलिए हरितालिका तीज पर सुहाग सामग्रियों का भी महत्व है। सुहाग की सामग्री में बिंदी, सिंदूर, कुमकुम, मेहंदी, बिछिया, काजल, चूड़ी, कंघी, महावर आदि को शामिल करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *